Wednesday, September 29, 2010

धर्मो के यह रहनुमा

धर्मो के यह रहनुमा

बाँट दिया इंसान को
बाँट दिया ईमान को
धर्म के टेकेदारो ने
बाँट दिया भगवान को
इन्ही से है इनकी रोटिया सिकती
जब भी देखा कुर्सी खिसकती
तभी नारा लगा डालते
धर्म की आग जला डालते
पिस्ता आम इंसान यहाँ
इनका तब ईमान कहाँ
जलता गरीबो का घर
किनको किसी ना डर
आप बेटे टीवी पर
मजे लेते हम देख लड़
खुश होते पीट-पीट ताली
यह वार जो न जाता कभी खाली
धर्मो के यह रहनुमा खुद को बतलाते
कभी देखा किसी मस्जिद पर
या मंदिर रोज जाते
खूब उड़ाते मोज बहार
लगाता अपने घर के बाहर
खाकी के यह चोंकिदार
मिलने जब भी हम जाते
यह नहीं आता कभी बाहर
शक्ल दिखती पांच साल मे एक बार
अब तुम भी बनो थोडा समझदार
छोड़ो आपसी यह रंजिश
थोडा धर्मो से आओ बाहर
गले मिलो सब एक हो
चाहे हो ईद या दीपावली का त्योहार
दो दिन की जिन्दगी
आओ हम हँस मिल साथ बिताये यार
~~~~पवन अरोड़ा~~

1 comment:

  1. nice blogs u r a great writer, we r in the same city so would like to meet u

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